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Money Matters - A Short Story

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 Money Matters                  "I have lost my job", replied Jubin painfully. Jubin lived in Madhupur. He was very sad, but he had been known all over his village to be a happy person. Yes, that was right. Jubin was a school teacher. He served in the local primary school. After completing his college education Jubin got a service to the post of Assistant Teacher in a local primary school, namely Medha Smriti Primary School. His parents, Sujit and Ama, were very happy. Their only son had got service.            Jubin was good in education. He always passed with distinction. His service of life began happily. He got immense respect in the village. Villagers often used to come at jubin's house to take his advice for their children's education. After two years of service, Jubin was married to Mina, daughter of Shyamal, a neighbouring land-lord. Both families were happy after the marriage. To allow the new coupl...

इंतेकाम - एक कविता। Revenge - A Poem

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  इंतेकाम   बोलो अब क्या करोगे  सोचो अब कहां भगोगे,  करलिए तुम बहुत जुल्म  अब हम इंतेकाम लेंगे! क्या सोचेथे  हम कुछ नहीं कर सकते?  जो मर्जी वह करोगे?  तुम सबका घरा भर गया है  अब हम इंतेकाम लेंगे! इंसान को इंसान ना समझे  लुटमारी, खून-खराबासे हमें डराते रहे!  अब कैसे डराओगे?  हम और नहीं डरेंगे,  क्योंकि हमें इंतकाम चाहिए!   क्या सोचे थे,  गुंडागिरी से राज करोगे? जो मर्जी वह करोगे? अब ना बचोगे तुम,  ना तुम्हारे गुंडे,  बहुत सहेलिए हम, और ना सहेंगे  क्योंकि, अब हमें इंतेक़ाम चाहिए। पढ़िए अगला कविता (क्या खुदा है) पढ़िए पिछला कविता (इंसाफ)

মহা প্রলয় -একটি কবিতা। Great Reformation - A Poem

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 মহা প্রলয়  সমাজ ধ্বংসের জন্য  যথেষ্ট একজন অমানুষ,  জাতির ধ্বংসের জন্য  প্রয়োজন শুধুই একটি রাক্ষস। গোগ্রাসে খায় শুধুই  মানুষের পর মানুষ,  খিদে তার এতই ভীষণ  নিরাপদ থাকে না - নারী ও পুরুষ!   শুধুই লালসা আর কু-বুদ্ধি  ঘুরপাক খায় মাথায়, উদ্দেশ্য শুধুই একটি  কিভাবে মানুষের মাংস খায়! ভীষণ তার শক্তি  মানুষকে তুচ্ছ ভাবে,  ভুলে যায় সে  তারও মরণ আছে! মহিষাসুরকেই নিতে পারো  হিসেবে উদাহরণ,  স্বর্গ - মর্ত্য - পাতলে  করেছিল কিরকম আলোড়ন!  কিন্তু পরিণতি হয়েছিল কি?  ক্ষমতায় অন্ধ দানবের,  অমর হতে পারেনি সে  মরেছিল দূর্গা দেবীর হাতে!   এবারও আসছে দূর্গা  বলী চাই রাক্ষসের,  মহাপ্রলয় আসুক এ ধরায়  বিচার চাই আর জি করের! পড়ুন পরবর্তী কবিতা (অন্যভাবে) পড়ুন পূর্ববর্তী কবিতা(নৃশংসতা)

इंसाफ - एक कविता। Justice - A Poem

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 इंसाफ  चार और एक ही आवाज  चाहिए इंसाफ! चाहिए इंसाफ!  मुंह बंद करने का कोशिश भी जारी है  पर हम ना रुकेंगे, हम ना रुकेंगे ! घोर पाप का कठोर इंसाफ  चाहिए हम सबको,  पपियोका जमीन खिसक जाए  रहमका बात अब ना सुनो! इंसान के नाम पर वह शैतान है,  हैवानियत उनका काम,  सारा संसार बह नष्ट कर देगा  अब चाहिए इंतकाम! छोड़ेंगे नहीं अब किसीको  सजा देंगे हर पापीको,  भागनेका कोई रह ना होगा  अब इंसाफ होगा, अब इंसाफ होगा ! हर लूट का चीज छीन लूंगा  छुपाए हो जितना पैसा  खरीदे हो जितना मकान,  रास्ते पर थे, अब रास्ते पर ही पटकुंगा  अब हम लेंगे पापियों का जान। पढ़िए अगला कविता (इंतेकाम) पढ़िए पिछला कविता (सब अपराधी)

নৃশংসতা - একটি কবিতা। Barbarity - A Poem

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 নৃশংসতা  দৃষ্টিকটু, রমহর্ষক,  ছাড়িয়ে গেছে পাশবিকতা  স্বতঃস্ফূর্তভাবে মানুষ রাস্তায় নেমেছে,  এমনই নৃশংসতা, এমনই নিশংসতা! শ্লীলতাহানি, হত্যা  ক্ষত-বিক্ষত করা, হাড় ভেঙ্গে দেওয়া  মানবিক মানুষের হৃদয় কেঁপে ওঠে এমনই বর্বরতা, এমনই বর্বরতা ! সভা হয়েছে, নাটক চলেছে,  ধর্ষক ও খুনিদের বাঁচাতে পাশবিক ধর্ষণ ও হত্যাকে  পরিকল্পিতভাবে আত্মহত্যা বলেছে। প্রমাণ লোপাটের জন্য  অসময়ে দেহের ময়নাতদন্ত করেছে,  বাবা-মাকে দেহ দেখাতে, দীর্ঘ প্রতি প্রতীক্ষা করিয়েছে, অথচ শব দাহ করতে ত্বরা দেখিয়েছে! এই নারকীয় ঘটনার কান্ডারীসব, ধর্ষকদের বাঁচানোর ষড়যন্ত্রীসব,  সাহায্যকারী অমানুষসব,  কেউ ছাড়া পাবে না, কেউ ছাড়া পাবে না!  ফাঁসি সকলের হবেই এবার  হতে পারে না ক্ষমা, এই নৃশংসতার! পড়ুন পরবর্তী কবিতা(মহাপ্রলয় ) পড়ুন পূর্ববর্তী কবিতা (বিচার)

Justice for R.G.Kar - A Poem

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 Justice for R.G.Kar Violent, inhuman, deplorable, Raped, killed, for orphaned - a doctor! How despicable! How despicable! This time brutality surpassed everything  Broke the patience of common people!   A god-like doctor  Who would cure the patients,  Has been brutally raped and murdered  What a horror! What a horror! Concocted events were played  To conceal the base deed, Though the supreme chair  By her own gender is occupied.   Now enough, limit crossed  The pitcher of sin is overflowed Nothing more it can contain  They have to bear all the pain  Which they inflicted on her  Because people must take justice for R.G.Kar. Read Next Poem (Rain) Read Previous Poem

सब अपराधी - एक कविता। All Culprits- A Poem

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 सब अपराधी  एक नहीं सब मिलकर किया  अपराध नहीं घोर पाप किया,  ईश्वर को बेआव्रु किया  इंसानियत का धैर्य तोड़ दिया ! एक खुशहाल जिंदगी तबाह किया  एक सुंदर सपना तोड़ दिया  एक विकसित परिवार नष्ट किया  पाप नहीं घोर पाप किया! पाप करने वाले और बचाने वाली  सब है अपराधी, सब है अपराधी! कोई एक का नहीं अब चाहिए हमें  सबका फैंसी, सबका फैंसी! कर लिए वह जितना करना था  अब हमें और सहना नहीं,  उन सबका मौत अब हमें चाहिए  रोक ना सकेंगे अब हमें कोई! मिटाने के लिए अब हम है तैयार  रुकेंगे मिटाकर ही, छोड़ेंगे ना अब हाम किसीको  सब है अपराधी, सब है अपराधी। पढ़िए अगला कविता (इंसाफ) पढ़िए पिछला कविता