इंतेकाम - एक कविता। Revenge - A Poem

 इंतेकाम 


इंतेकाम - एक कविता। Revenge - A Poem

बोलो अब क्या करोगे

 सोचो अब कहां भगोगे,

 करलिए तुम बहुत जुल्म 

अब हम इंतेकाम लेंगे!


क्या सोचेथे 

हम कुछ नहीं कर सकते?

 जो मर्जी वह करोगे?

 तुम सबका घरा भर गया है 

अब हम इंतेकाम लेंगे!


इंसान को इंसान ना समझे

 लुटमारी, खून-खराबासे हमें डराते रहे!

 अब कैसे डराओगे? 

हम और नहीं डरेंगे,

 क्योंकि हमें इंतकाम चाहिए!

 

क्या सोचे थे,

 गुंडागिरी से राज करोगे?

जो मर्जी वह करोगे?

अब ना बचोगे तुम,

 ना तुम्हारे गुंडे,

 बहुत सहेलिए हम, और ना सहेंगे

 क्योंकि, अब हमें इंतेक़ाम चाहिए।


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इंतेकाम - एक कविता। Revenge - A Poem



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