इंसाफ - एक कविता। Justice - A Poem
इंसाफ
चार और एक ही आवाज
चाहिए इंसाफ! चाहिए इंसाफ!
मुंह बंद करने का कोशिश भी जारी है
पर हम ना रुकेंगे, हम ना रुकेंगे !
घोर पाप का कठोर इंसाफ
चाहिए हम सबको,
पपियोका जमीन खिसक जाए
रहमका बात अब ना सुनो!
इंसान के नाम पर वह शैतान है,
हैवानियत उनका काम,
सारा संसार बह नष्ट कर देगा
अब चाहिए इंतकाम!
छोड़ेंगे नहीं अब किसीको
सजा देंगे हर पापीको,
भागनेका कोई रह ना होगा
अब इंसाफ होगा, अब इंसाफ होगा !
हर लूट का चीज छीन लूंगा
छुपाए हो जितना पैसा
खरीदे हो जितना मकान,
रास्ते पर थे, अब रास्ते पर ही पटकुंगा
अब हम लेंगे पापियों का जान।
Comments
Post a Comment