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Showing posts from September, 2024

इंतेकाम - एक कविता। Revenge - A Poem

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 इंतेकाम  बोलो अब क्या करोगे  सोचो अब कहां भगोगे,  करलिए तुम बहुत जुल्म  अब हम इंतेकाम लेंगे! क्या सोचेथे  हम कुछ नहीं कर सकते?  जो मर्जी वह करोगे?  तुम सबका घरा भर गया है  अब हम इंतेकाम लेंगे! इंसान को इंसान ना समझे  लुटमारी, खून-खराबासे हमें डराते रहे!  अब कैसे डराओगे?  हम और नहीं डरेंगे,  क्योंकि हमें इंतकाम चाहिए!   क्या सोचे थे,  गुंडागिरी से राज करोगे? जो मर्जी वह करोगे? अब ना बचोगे तुम,  ना तुम्हारे गुंडे,  बहुत सहेलिए हम, और ना सहेंगे  क्योंकि, अब हमें इंतेक़ाम चाहिए। पढ़िए अगला कविता  पढ़िए पिछला कविता (इंसाफ)

মহা প্রলয় -একটি কবিতা। Great Reformation - A Poem

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 মহা প্রলয়  সমাজ ধ্বংসের জন্য  যথেষ্ট একজন অমানুষ,  জাতির ধ্বংসের জন্য  প্রয়োজন শুধুই একটি রাক্ষস। গোগ্রাসে খায় শুধুই  মানুষের পর মানুষ,  খিদে তার এতই ভীষণ  নিরাপদ থাকে না - নারী ও পুরুষ!   শুধুই লালসা আর কু-বুদ্ধি  ঘুরপাক খায় মাথায়, উদ্দেশ্য শুধুই একটি  কিভাবে মানুষের মাংস খায়! ভীষণ তার শক্তি  মানুষকে তুচ্ছ ভাবে,  ভুলে যায় সে  তারও মরণ আছে! মহিষাসুরকেই নিতে পারো  হিসেবে উদাহরণ,  স্বর্গ - মর্ত্য - পাতলে  করেছিল কিরকম আলোড়ন!  কিন্তু পরিণতি হয়েছিল কি?  ক্ষমতায় অন্ধ দানবের,  অমর হতে পারেনি সে  মরেছিল দূর্গা দেবীর হাতে!   এবারও আসছে দূর্গা  বলী চাই রাক্ষসের,  মহাপ্রলয় আসুক এ ধরায়  বিচার চাই আর জি করের! পড়ুন পরবর্তী কবিতা পড়ুন পূর্ববর্তী কবিতা(নৃশংসতা)

इंसाफ - एक कविता। Justice - A Poem

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 इंसाफ  चार और एक ही आवाज  चाहिए इंसाफ! चाहिए इंसाफ!  मुंह बंद करने का कोशिश भी जारी है  पर हम ना रुकेंगे, हम ना रुकेंगे ! घोर पाप का कठोर इंसाफ  चाहिए हम सबको,  पपियोका जमीन खिसक जाए  रहमका बात अब ना सुनो! इंसान के नाम पर वह शैतान है,  हैवानियत उनका काम,  सारा संसार बह नष्ट कर देगा  अब चाहिए इंतकाम! छोड़ेंगे नहीं अब किसीको  सजा देंगे हर पापीको,  भागनेका कोई रह ना होगा  अब इंसाफ होगा, अब इंसाफ होगा ! हर लूट का चीज छीन लूंगा  छुपाए हो जितना पैसा  खरीदे हो जितना मकान,  रास्ते पर थे, अब रास्ते पर ही पटकुंगा  अब हम लेंगे पापियों का जान। पढ़िए अगला कविता (इंतेकाम) पढ़िए पिछला कविता (सब अपराधी)