फुटबॉल - एक कविता। Football - A Poem
फुटबॉल
खेलतो बहुत सारा है
पर, तुम्हारा जैसा कोई नहीं
खेलनातो सब जानते हैं
पर, जिसमें हिम्मत और बुद्धि है
फुटबॉलमे जीत्ताहै वही!
तुमतो हो खेलोंके सान
जितना वक्त चलतेहो
सिर्फ खिलाड़ियोंको नहीं
देखनेवालोंकोभी खेल सिखातेहो!
सबके अंदर ज्बालातेहो आंग, हिम्मतका
और, आखरीमें समझातेहो,
यह खेल नहीं डरने वालोंका।
हिम्मत एक आकरा है
तो, कौशल दूसरा,
इसके साथ अगर गति मिल जाए
तो, उसका कोई कर ना सके मुकाबला!
फुटबॉलमें मजाही कुछ और है
क्योंकि, असली खिलाड़ी रहताहै
मैदान के बाहरमें!
खिलाड़ी तो सिर्फ मोहरा है
उन्हें अंजाम देता होताहै!
दिमाग तो बाहर चलताहै,
उसे पताहै कब, क्या करनाहै!
यह मेलबंधन दिमाग और हिम्मतका
यहीतो मजाहै, फुटबॉल खेलने और देखनेका!
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