मैं निकल परा कविता| A Poem on New Beginning.
मैं निकल परा
मैं निकल परा जिंदगी की तलाश में
बह हे कहां नाजाने
मिलेगी वह कब मुझे
है इश्बर, यही विनती है तुझसे
कम कर दो ए इंतजार की घड़ी
अब बता दो मुझे, वह कैसी दिखती!
जिंदगी उसके बिन अधूरा लगें
अब उससे मिला दो, यही विनती है तुझसे।
वहभी क्या याद करती होगी मुझे
ढूंढती होगी, बिनती करती होगी तुझसे!
या खुश वह मेरे बिन?
मुझे छोड़कर कैसे करती होगी उसकी दिन?
ए खुदा, अबतो कुछ कर!
कुछ अच्छा लगता नहीं अब उसे छोड़कर!
जिंदगी अकेले बहुत काट लिया
अब उसे छोड़कर जाए नहीं जिया!
और कितना बिनती करु तुझसे
मिला दे तू अब मुझे उससे!
अगर तु सचमें मुझे अपना बेटा मानतेहो
कल जरूर बता देना,कहां है वह!
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