फसल कविता। A Poem on Crop

फसल

हरी पत्ती हरा स्व

जलमे में बास, ऊपर आकाश।

 ना कयि बधाहे

 चारों ओर तुमही छाये,

 रहतेहो छोटासा, पर काम बड़ा

 तुम्हारे लिए यह संसार खड़ा।

फसल कविता। A Poem on Crop

तुम जानतेहो

 यह नदियां, खेत-खलियान 

सब पड़ जाएगा फिका,

 खो देगा मान,

 अगर भूखा रहने लगे इंसान!


इसलिएतो तुम आए 

फसल हम तुम्हें बुलाए 

धान, गेहूं - तुम्हारा कितना नाम 

हे पालनहार, तुम्हें शतकोटि प्रणाम!


परिये अगले कविता (धर्म)

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