धर्म कविता। A Poem on Religion

 धर्म

सच्चे मनसे मानो

 तो खुदा तुम्हारा पास है!

ईमानसे कुछ करो 

तो वही धर्म कहलाताहे।

धर्म कविता। A Poem on Religion


पर आज धर्म समानहे

 इसका व्यापार हो रहाहे!

धर्म पालने वाले इसे वेचतेहे!

ज्यादा पैसा दो,

 तो धर्म तुम्हारे,

तुम्हारा घरमें आएगा

 सब तुम्हें धार्मिक बुलाएगा!


यह व्यापार अद्भुत है 

बेचने वाले और खरीदने वाले 

वह दोनों का ही फायदा होता है

पर, मानव समाज, देश होता है धीरे-धीरे नाश!


इसलिए मन अच्छा रखो, 

काम अच्छा करो, 

ऐसे ही तुम धर्म के व्यापार को

 रोक सकोगे, 

 और तुम एक सच्चे धार्मिक कहलाओगे!


परिये अगले कविता (उम्र)

परिये पिछले कविता (फसल)




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